हेलो दोस्तों इस्लामिक सासको की श्रृंखला को आगे भड़ाते हुए आज हम खलजी साम्रज्य की बात करेंगे. गुलाम वंश मैंने पूर्ण कर दिया है कुल ८ व्याख्यान है गुलाम वंश पर अगर आपने अभी तक नहीं पढ़े तोह आप जाके पढ़ सकते है.
इस्लामिक गुलाम वंश के सासको की जीवनी
आज हम बात करेंगे जलालुद्दीन खिलजी की बारे मैं येह खलजी साम्रज्य के संस्थापक थे और कहा जाता है की काफी अच्छे शासक थे संत तक इनको इतिहासकारो ने कहा है, तोह जानेंगे कैसे थे चलिए शुरू करते है जलालुद्दीन खिलजी जीवनी - Biography of Jalaluddin Khalji in Hindi.
गुलाम वंश की श्रृंखला के वक़्त हमने घियासुद्दीन बलबन की जीवनी को देखा था, हमने देखा की घियासुद्दीन बलबन ने इस्लामिक शासक को काफी मज़बूत किया जहा जहा पर भी इसका शासन था वहा पर बहुत मजबूत पकड बना ली. लेकिन जो विस्तार था वह किया अल्लाउद्दीन खिलजी ने. गुलाम वंश के जो शासक थे वह दक्षिण को जीत नहीं पाए थे लेकिन अल्लाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण को भी जीत लिया था.
१२९० मैं मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद गद्दी से हठ गया था बीमारी के चलते, और गद्दी पर बिठा दिया गया था मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद के ३ साल के बेटे कैमूर को लेकिन जलालुदीन खिलजी ने कैमूर को मार डाला और सत्ता हाथ मैं आ गयी जलालुदीन खिलजी के पास.
जलालुदीन खिलजी सुल्तान तोह बन गया लेकिन शासन करना इतना आसान होने वाला नहीं था, इतिहासकार बताते है की जलालुदीन खिलजी बेहद दयालु इंसान था यह तोह अपने विरोधियो को भी माफ़ कर देता था जो इसको मारने की साज़िशे करते थे.
फिर घियासुद्दीन बलबन की मृत्यु हो जाती है और मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद की भी मृत्यु हो जाती है और फिर १३ जून १२९० मैं जलालुदीन खिलजी दिल्ली सुल्तनत की गद्दी पर बैठता है जब यह सुल्तान बना था तब इसकी उम्र थी ७० साल.
अपने शासन मैं जलालुदीन खिलजी ने अपने बेटो को अपने परिवारवालो को बहुत बड़े बड़े पद दिए और जो रईस राजदरबारी थे घियासुद्दीन बलबन के वक़्त उनको भी उनके जो पद थे उनपर उन्हें बनाया रक्खा यह काफी असामान्य था क्योँकि एक पूरे साम्रज्य का परिवर्तन हो रहा था तोह यहाँ पर तोह अब एक पूरा नया साम्रज्य है तोह क्या यह नए साम्रज्य के लोग पहले के लोगो को उनके पदो पर बैठने देंगे, नहीं बैठने देंगे क्योँ नहीं बैठने देंगे क्योँकि कभी भी विद्रोह हो सकता है, लेकिन जलालुदीन खिलजी ने तोह सबको बैठने दिया.
अब इस चीज़ से जलालुदीन खिलजी के बेटे और इनके ही साम्रज्य के कुछ लोग इनसे निरास हो गए और निरसा का सिर्फ एक यही कारण नहीं था, लोगो को माफ़ कर देना चाहे फिर भले ही वह हत्यारे हो या फिर विद्रोहयि भी क्योँ ना हो तोह यह भी एक कारण था.
दोनों ही मलिक छज्जू और जलालुदीन खिलजी युद्ध के लिए सामने आये लेकिन जलालुदीन खिलजी का बेटा अर्काली खान ने मलिक छज्जू को हरा दिया, मलिक छज्जू पकड़कर जेल मैं दाल दिया गया और काफी मारा गया उसे और फिर जलालुदीन खिलजी के सामने उसे लाया गया, अब जलालुदीन खिलजी ने जब मलिक छज्जू को देखा तोह जलालुदीन खिलजी ने कहा की इसको मेरे सामने से हटा दो मुझसे इसकी हालत देखि नहीं जा रही और मैं इसे अभी इसी वक़्त माफ़ कर रहा हु और इतना ही नहीं रात को खाने का आमंत्रण दिया मलिक छज्जू को और उसकी तारीफ़ करने लगा.
अब आप सोचिये उस वक़्त अगर कोई विद्रोह करता था तोह उनके सर कटवा दिए जाते थे और जलालुदीन खिलजी तोह विद्रोही को खाने पर बुला रहे है और उनकी तारीफ़ कर रहे है. और इसी वजह से लोग जलालुदीन खिलजी से नाराज़ होने लगे की आप इस तरह से किसी को माफ़ नहीं कर सकते अगर आप ऐसा ही करते रहे तोह हमारा साम्रज्य कैसे बचेगा, और इस बात से अल्लाउद्दीन खिलजी भी काफी नाराज़ हो गया था.
जलालुदीन खिलजी ने सेकड़ो लोगो को माफ़ कर दिया था लेकिन एक सक्स को उसने माफ़ नहीं किया था और उसका नाम था सिद्दी मौला. सिद्दी मौला ने वद्रोह करने की कोशिश की थी और इसकी लोकप्रियता काफी थी और हिन्दू शासक भी इसको सहयोग दे रहे थे तोह जलालुदीन खिलजी को तब शायद खतरा महसूस हुआ होगा की इसको मरवाना ज़रूरी है वरना गद्दी गयी तोह इसको मरवा दिया था.
इससे जलालुदीन खिलजी को काफी ग़ुस्सा आया और फिर जलालुदीन खिलजी बहुत ही बड़ी सेना लेके गए और मंगोलो से युद्ध किया और उनको खदेड़ दिया. मंगोल की सेना का जो सेनापति था उलघु इसको पकड़ लिया गया था तोह इसको भी माफ़ कर दिया और कहा की आज से तुम मुसलमान हो आज से तुम भारत मैं रहोगे, सेनापति के साथ साथ कुछ और सैनिक थे उन सबको माफ़ कर दिया था और उन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था.
लेकिन रणथम्बोर यहाँ पर जीत नहीं सका जलालुदीन खिलजी, रणथम्बोर का जो क़िला है वह बनाया इस तरीके से है की उस पर विजय प्राप्त करना बहुत मुश्किल था तोह रणथम्बोर को जीत नहीं पाया.
उस वक़्त दक्षिण का एक राज्य था देवगिरि, देवगिरि काफी अमीर राज्य था और इससे पहले कोई भी राजा देवगिरि को नहीं जीत पाया था, तोह साज़िश यही थी की देवगिरि पर हमला करो वहा पर जितना भी धन है और संपत्ति है उसे लूटो और वह की सेना को बाद मैं अपनी तरफ कर लो और अंत मैं जलालुदीन खिलजी पर हमला कर दो.
तोह अलाउद्दीन खिलजी ने ८००० घुड़सवार को चुना अब वह देवगिरि गया ऐसा था की लोगो को लगे की वह आक्रमण करने के लिए नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए आया हो और देवगिरि के राजा रामचंद्र को कुछ पता ही नहीं था की आक्रमण होने वाला है लोगो को तोह ऐसा ही लग रहा था की ऐसे ही व्यापार के लिए आया होगा, लेकिन अचानक ही अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने आक्रमण कर दिया और देवगिरि को सिर्फ चंद मिनटों मैं हरा दिया गया.
देवगिरि से अलाउद्दीन खिलजी को खूब सारा खज़ाना मिला, हाथी मिले, घोड़े मिले तोह अलाउद्दीन खिलजी काफी अमीर हो गया था. अब जब सब कुछ लूट कर वापस आ रहा था अलाउद्दीन खिलजी तोह उस वक़्त जलालुदीन खिलजी ग्वालियर मैं था.
तोह अलाउद्दीन खिलजी ने अपने भाई को खत लिखा और कहा की मैं चाहता हु की सुल्तान मुझे माफ़ कर दे क्योँ माफ़ कर दे, क्योँकि देवगिरि पर हमला जलालुदीन खिलजी को बता कर नहीं किया गया था, तोह खत मैं यही लिखा था की मुझे माफ़ कर दे और मुझे मानिकपुर मैं आके मिले और जो देवगिरि से दौलत लूटी गयी है मैं उन्हें दे दूंगा.
तोह फिर मानिकपुर मैं दोनों की मुलाक़ात हुई, पहले एक नदी पड़ती थी उस नदी के पार अलाउद्दीन खिलजी था तोह नदी के पहले ही जलालुदीन खिलजी की सेना को रोक लिया गया लेकिन फिर भी कुछ रक्षक उसके साथ ही थे तोह दोनों मैं मुलाक़ात हुई और बाद मैं अलाउद्दीन खिलजी ने जलालुदीन खिलजी को मार दिया.
और जैसे ही जलालुदीन खिलजी मरा अलाउद्दीन खिलजी ने अपने आप को सुल्तान घोषित कर दिया, तोह अलाउद्दीन खिलजी ने शासन को कैसे चलाया यह हम उसकी जीवनी मैं देखेंगे.
तोह यह थी जलालुद्दीन खिलजी जीवनी - Biography of Jalaluddin Khalji in Hindi.
इस्लामिक गुलाम वंश के सासको की जीवनी
आज हम बात करेंगे जलालुद्दीन खिलजी की बारे मैं येह खलजी साम्रज्य के संस्थापक थे और कहा जाता है की काफी अच्छे शासक थे संत तक इनको इतिहासकारो ने कहा है, तोह जानेंगे कैसे थे चलिए शुरू करते है जलालुद्दीन खिलजी जीवनी - Biography of Jalaluddin Khalji in Hindi.
गुलाम वंश की श्रृंखला के वक़्त हमने घियासुद्दीन बलबन की जीवनी को देखा था, हमने देखा की घियासुद्दीन बलबन ने इस्लामिक शासक को काफी मज़बूत किया जहा जहा पर भी इसका शासन था वहा पर बहुत मजबूत पकड बना ली. लेकिन जो विस्तार था वह किया अल्लाउद्दीन खिलजी ने. गुलाम वंश के जो शासक थे वह दक्षिण को जीत नहीं पाए थे लेकिन अल्लाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण को भी जीत लिया था.
Who Was Jalaluddin Khalji
जलालुदीन खिलजी दिल्ली सुल्तनत का सुल्तान था १२९० से लेकर १२९६ तक, देखा जाए तोह यह भी गुलाम ही था और इसका असली नाम था फ़िरोज़. सुल्तान बन्ने से पहले जलालुदीन खिलजी, मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद की सेना मैं कमांडर था.१२९० मैं मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद गद्दी से हठ गया था बीमारी के चलते, और गद्दी पर बिठा दिया गया था मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद के ३ साल के बेटे कैमूर को लेकिन जलालुदीन खिलजी ने कैमूर को मार डाला और सत्ता हाथ मैं आ गयी जलालुदीन खिलजी के पास.
जलालुदीन खिलजी सुल्तान तोह बन गया लेकिन शासन करना इतना आसान होने वाला नहीं था, इतिहासकार बताते है की जलालुदीन खिलजी बेहद दयालु इंसान था यह तोह अपने विरोधियो को भी माफ़ कर देता था जो इसको मारने की साज़िशे करते थे.
Jalaluddin Khalji Early Life
जलालुदीन खिलजी तुर्क था और खलज जनजाति से था, इसका पहला नाम था या फिर आप यह भी कह सकते है की इसका असली नाम था मलिक फ़िरोज़. अब यह और इसका भाई शिहाबुद्दीन, घियासुद्दीन बलबन के अंगरक्षक थे और जो समाना से मंगोल का आक्रमण होता था तब जलालुदीन खिलजी भी काफी कुशल तरीके से लड़ता था.फिर घियासुद्दीन बलबन की मृत्यु हो जाती है और मुइज़ुद्दीन क़ैक़ाबाद की भी मृत्यु हो जाती है और फिर १३ जून १२९० मैं जलालुदीन खिलजी दिल्ली सुल्तनत की गद्दी पर बैठता है जब यह सुल्तान बना था तब इसकी उम्र थी ७० साल.
Sultan
७० साल की उम्र मैं जलालुदीन खिलजी सुल्तान बना था अब क्योँकि इतनी बड़ी उम्र मैं यह सुल्तान बना था तोह यह चहाता था की इसके जो बाकी के दिन है वह आराम से गुज़रे इस लिए वह सब को माफ़ करने लगा और सबको खुश करने लगा और इतना उदार हो गया था की लोग परेशान हो गए थे की अगर सुल्तान इस तहरा से व्यवहार करेगा तोह शासन कैसे चलेगा.अपने शासन मैं जलालुदीन खिलजी ने अपने बेटो को अपने परिवारवालो को बहुत बड़े बड़े पद दिए और जो रईस राजदरबारी थे घियासुद्दीन बलबन के वक़्त उनको भी उनके जो पद थे उनपर उन्हें बनाया रक्खा यह काफी असामान्य था क्योँकि एक पूरे साम्रज्य का परिवर्तन हो रहा था तोह यहाँ पर तोह अब एक पूरा नया साम्रज्य है तोह क्या यह नए साम्रज्य के लोग पहले के लोगो को उनके पदो पर बैठने देंगे, नहीं बैठने देंगे क्योँ नहीं बैठने देंगे क्योँकि कभी भी विद्रोह हो सकता है, लेकिन जलालुदीन खिलजी ने तोह सबको बैठने दिया.
अब इस चीज़ से जलालुदीन खिलजी के बेटे और इनके ही साम्रज्य के कुछ लोग इनसे निरास हो गए और निरसा का सिर्फ एक यही कारण नहीं था, लोगो को माफ़ कर देना चाहे फिर भले ही वह हत्यारे हो या फिर विद्रोहयि भी क्योँ ना हो तोह यह भी एक कारण था.
Chajju Revolt
मलिक छज्जू यह घियासुद्दीन बलबन का भांजा था इसने विद्रोह कर दिया, वद्रोह इसने किया था गद्दी के लिए और इसका कहना था की यही एक मात्रा योग्य है दिल्ली सल्तनत की गद्दी के लिए क्योँकि यह घियासुद्दीन बलबन के परिवार से आता है और खून का रिश्ता है.दोनों ही मलिक छज्जू और जलालुदीन खिलजी युद्ध के लिए सामने आये लेकिन जलालुदीन खिलजी का बेटा अर्काली खान ने मलिक छज्जू को हरा दिया, मलिक छज्जू पकड़कर जेल मैं दाल दिया गया और काफी मारा गया उसे और फिर जलालुदीन खिलजी के सामने उसे लाया गया, अब जलालुदीन खिलजी ने जब मलिक छज्जू को देखा तोह जलालुदीन खिलजी ने कहा की इसको मेरे सामने से हटा दो मुझसे इसकी हालत देखि नहीं जा रही और मैं इसे अभी इसी वक़्त माफ़ कर रहा हु और इतना ही नहीं रात को खाने का आमंत्रण दिया मलिक छज्जू को और उसकी तारीफ़ करने लगा.
अब आप सोचिये उस वक़्त अगर कोई विद्रोह करता था तोह उनके सर कटवा दिए जाते थे और जलालुदीन खिलजी तोह विद्रोही को खाने पर बुला रहे है और उनकी तारीफ़ कर रहे है. और इसी वजह से लोग जलालुदीन खिलजी से नाराज़ होने लगे की आप इस तरह से किसी को माफ़ नहीं कर सकते अगर आप ऐसा ही करते रहे तोह हमारा साम्रज्य कैसे बचेगा, और इस बात से अल्लाउद्दीन खिलजी भी काफी नाराज़ हो गया था.
जलालुदीन खिलजी ने सेकड़ो लोगो को माफ़ कर दिया था लेकिन एक सक्स को उसने माफ़ नहीं किया था और उसका नाम था सिद्दी मौला. सिद्दी मौला ने वद्रोह करने की कोशिश की थी और इसकी लोकप्रियता काफी थी और हिन्दू शासक भी इसको सहयोग दे रहे थे तोह जलालुदीन खिलजी को तब शायद खतरा महसूस हुआ होगा की इसको मरवाना ज़रूरी है वरना गद्दी गयी तोह इसको मरवा दिया था.
Mongol Invasion
मंगोल का आक्रमण काफी होता था उत्तर-पश्चिम सीमांत से, घियासुद्दीन बलबन ने यहाँ की सुरक्षा को काफी मज़बूत कर दिया था बहुत सारे किले बनवा दिए थे लेकिन घियासुद्दीन बलबन की मौत के बाद मंगोल को काफी अच्छी तक मिल गयी आक्रमण करने की, और बार बार आक्रमण करते थे और सब लूट के चले जाते थे.इससे जलालुदीन खिलजी को काफी ग़ुस्सा आया और फिर जलालुदीन खिलजी बहुत ही बड़ी सेना लेके गए और मंगोलो से युद्ध किया और उनको खदेड़ दिया. मंगोल की सेना का जो सेनापति था उलघु इसको पकड़ लिया गया था तोह इसको भी माफ़ कर दिया और कहा की आज से तुम मुसलमान हो आज से तुम भारत मैं रहोगे, सेनापति के साथ साथ कुछ और सैनिक थे उन सबको माफ़ कर दिया था और उन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था.
Rajputs
राजपूतो के बहुत बड़े राजा थे हम्मीर देव, अब यह काफी तेज़ी से विस्तार कर रहे थे तोह काफी खतरा महसूस होने लगा जलालुदीन खिलजी को, तोह जलालुदीन खिलजी ने आक्रमण करना शुरू कर दिया, मंडावर, झैँ, इन पर विजय प्राप्त की जलालुदीन खिलजी ने.लेकिन रणथम्बोर यहाँ पर जीत नहीं सका जलालुदीन खिलजी, रणथम्बोर का जो क़िला है वह बनाया इस तरीके से है की उस पर विजय प्राप्त करना बहुत मुश्किल था तोह रणथम्बोर को जीत नहीं पाया.
Assassination
अलाउद्दीन खिलजी ने उस वक़्त भिलसा को जीत लिया था, और जलालुदीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी पर काफी भरोसा करता था क्योँकि भांजा था भाई का बेटा था, अलाउद्दीन खिलजी यहाँ पर साज़िश रचने लगा की कैसे गद्दी पर कब्ज़ा जमाया जाए. लेकिन अलाउद्दीन खिलजी के पास उस वक़्त सेना नहीं थी नाही इतना पैसा था की वह गद्दी पर अपना कब्ज़ा जमा सके.उस वक़्त दक्षिण का एक राज्य था देवगिरि, देवगिरि काफी अमीर राज्य था और इससे पहले कोई भी राजा देवगिरि को नहीं जीत पाया था, तोह साज़िश यही थी की देवगिरि पर हमला करो वहा पर जितना भी धन है और संपत्ति है उसे लूटो और वह की सेना को बाद मैं अपनी तरफ कर लो और अंत मैं जलालुदीन खिलजी पर हमला कर दो.
तोह अलाउद्दीन खिलजी ने ८००० घुड़सवार को चुना अब वह देवगिरि गया ऐसा था की लोगो को लगे की वह आक्रमण करने के लिए नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए आया हो और देवगिरि के राजा रामचंद्र को कुछ पता ही नहीं था की आक्रमण होने वाला है लोगो को तोह ऐसा ही लग रहा था की ऐसे ही व्यापार के लिए आया होगा, लेकिन अचानक ही अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने आक्रमण कर दिया और देवगिरि को सिर्फ चंद मिनटों मैं हरा दिया गया.
देवगिरि से अलाउद्दीन खिलजी को खूब सारा खज़ाना मिला, हाथी मिले, घोड़े मिले तोह अलाउद्दीन खिलजी काफी अमीर हो गया था. अब जब सब कुछ लूट कर वापस आ रहा था अलाउद्दीन खिलजी तोह उस वक़्त जलालुदीन खिलजी ग्वालियर मैं था.
तोह अलाउद्दीन खिलजी ने अपने भाई को खत लिखा और कहा की मैं चाहता हु की सुल्तान मुझे माफ़ कर दे क्योँ माफ़ कर दे, क्योँकि देवगिरि पर हमला जलालुदीन खिलजी को बता कर नहीं किया गया था, तोह खत मैं यही लिखा था की मुझे माफ़ कर दे और मुझे मानिकपुर मैं आके मिले और जो देवगिरि से दौलत लूटी गयी है मैं उन्हें दे दूंगा.
तोह फिर मानिकपुर मैं दोनों की मुलाक़ात हुई, पहले एक नदी पड़ती थी उस नदी के पार अलाउद्दीन खिलजी था तोह नदी के पहले ही जलालुदीन खिलजी की सेना को रोक लिया गया लेकिन फिर भी कुछ रक्षक उसके साथ ही थे तोह दोनों मैं मुलाक़ात हुई और बाद मैं अलाउद्दीन खिलजी ने जलालुदीन खिलजी को मार दिया.
और जैसे ही जलालुदीन खिलजी मरा अलाउद्दीन खिलजी ने अपने आप को सुल्तान घोषित कर दिया, तोह अलाउद्दीन खिलजी ने शासन को कैसे चलाया यह हम उसकी जीवनी मैं देखेंगे.
तोह यह थी जलालुद्दीन खिलजी जीवनी - Biography of Jalaluddin Khalji in Hindi.
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