हेलो दोस्तों इस्लामिक सासको पर आज एक और शासक की जीवनी मैं लेकर आया हु शम्सुद्दीन इल्तुतमिश, यह भी गुलाम वंश के ही शासक थे इससे पहले इनके ससुर क़ुत्ब अल-दिन ऐबक भी एक गुलाम थे और शम्सुद्दीन इल्तुतमिश, क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के गुलाम थे. तोह चलिए जानते है शम्सुद्दीन इल्तुतमिश जीवनी - Biography of Shams ud-din Iltutmish in Hindi
क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद दिल्ली सल्तनत को संभाला शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने और काफी अच्छा शासन किया १२१० लेकर १२३६ तक यह पूरा इनका शासन था.
दोस्तों इस जीवनी को अच्छे से समझने के लिए आप पहले क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की जीवनी पढ़े.
लेकिन कहा जाता है की शम्सुद्दीन इल्तुतमिश बहुत ही सुन्दर व्यक्ति था दिखने मैं, काफी लम्बा-चौड़ा उसे बताया गया, और इसके मातापिता इसे इसकी इस खूबसूरती की वजह से काफी प्यार करते थे जिसकी वजह से शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के भाई बहन काफी जलते थे शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से.
और सिर्फ इसी वजह से शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को बेच दिया गया, सब से पहले इसको ख़रीदा था जमालुद्दीन ने, लेकिन इसके बाद जमालुद्दीन ने इसको क़ुत्ब अल-दिन ऐबक को बेच दिया.
यहाँ पर एक बात मैं आपको बताना चाहता हु क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद गद्दी का उत्तराधिकारी क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के बेटे आरामशाह को होना चाहिए था लेकिन गद्दी मिली क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के दामाद शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को.
दिल्ली के जो अधिकारी थे वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को सहयोग दे रहे थे, इन्होने ही शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को न्योता दिया था दिल्ली आ के यहाँ पर शासन करने का, यह बात आरामशाह को अच्छी नहीं लगी उसने विद्रोह किया और युद्ध किया शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से और युद्ध में जीत हुई शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की युद्ध मैं आरामशाह मारा गया.
दोस्तों क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की जीवनी के वक़्त मैंने आपके एक बात बतायी थी की क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के लिए मोहम्मद घोरी का भरोसा जितना बेहद ज़रूरी था क्योँकि मोहम्मद घोरी की गद्दी के लिए ३ उत्तराधिकारी थे एक तोह खुद क़ुत्ब अल-दिन ऐबक, दूसरा एल्डोज और तीसरा क़बाचा, तोह जब चुनाव हुआ तोह क़ुत्ब अल-दिन ऐबक का हुआ तोह दूसरे चुप तोह बेठने वाले थे नहीं.
जैसे ही क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत हुई एल्डोज और क़बाचा यह खड़े हो गए भारत को जितने के लिए, तोह यहाँ पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के दो सब से बड़े दुश्मन थे एल्डोज और क़बाचा.
दूसरी और राजपूतो ने भी कह दिया था की हम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का शासन नहीं मानते, हम हमारा खुद का एक राज्य बनाएंगे, तोह राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र थे वहा पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश राज नहीं था.
देखिए क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद भारत के बहुत सारे राज्यों ने आज़ादी घोसित कर दी थी, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश सुल्तान बन गया था, जिस जिस राज्यों को शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से दिक्कत थी वहा पर सब से पहले इसने कूटनीति से समझाने की कोशिश की अगर नहीं समझे तोह उस राज्यों पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश आक्रमण कर देता था.
एल्डोज को खवाराज़मियन साम्राज्य ने हरा दिया था, तोह एल्डोज ने अब अपना रुख कर लिया भारत की तरफ, पंजाब, दिल्ली पर अपना कब्जा जमाना चाहता था.
१२१५ मैं एल्डोज और शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का युद्ध हुआ, एल्डोज हार गया और मारा गया तोह एल्डोज का खतरा तोह टल गया, लेकिन अब राजपूत खड़े हो गए.
रणथम्बोर, जालोर, अजमेर, ग्वालियर यहाँ के राजाओ ने आज़ादी घोसित कर दी थी इन सब के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने और इन सभी राज्यों को भी अपने कब्ज़े मैं किया.
चेंगिज खान ने सब कुछ जीत लिया था भारत को छोर के, जलाल उद-दिन मंगबर्नी जो ख़्वारिज़्म साम्रज्य के आखरी शासक थे, चेंगिज खान ने जलाल उद-दिन मंगबर्नी से कहा की तुम हमारे साथ हमारे अंदर काम करो बातचीत से सब कुछ हल करते है.
जिस सन्देशवाहक को भेजा था चेंगिज खान ने अपना सन्देश देने के लिए उसका सीर काट दिया जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने और वापस चेंगिज खान को भेज दिया.
चेंगिज खान इससे काफी ग़ुस्सा हुआ और पूरे ख़्वारिज़्म साम्रज्य का सफाया कर दिया, बच्चे, बूढ़े, औरते सबको पकड़ पकड़ कर जान से मारा गया, लेकिन जलाल उद-दिन मंगबर्नी अपनी जान बचा कर वह से भागा और सिंधु नदी मैं कूद गया, अब सिंधु नदी के एक और भारत है, चेंगिज खान नदी के दूसरी और खड़ा था और उसे लगा की यह नदी पार ही नहीं कर पाएगा, लेकिन जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने नदी पार कर ली और भागते भागते भारत आया.
भारत आकर जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से यह मांग की के मुझे यहाँ रहने की जगह दो और हम दोनों मिलकर चेंगिज खान को हराएंगे.
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को पता था की हम चेंगिज खान के आगे टीक नहीं सकते इस लिए सीधा मना कर दिया जलाल उद-दिन मंगबर्नी को की हम आपको कोई पन्हा नहीं देंगे.
अब जलाल उद-दिन मंगबर्नी चला गया मुल्तान जहा पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का दूसरा दुश्मन क़बाचा था, और इस वजह से क़बाचा के लिए दिक्कत खड़ी कर दी थी जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने, और बाद मैं शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के साथ क़बाचा का युद्ध हुआ, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने हरा दिया और इसकी वजह से क़बाचा ने सिंधु नदी मैं कूद कर अपनी जान दे दी.
तोह दो चीज़े हुई दिल्ली बच गयी, मंगोल ने आक्रमण नहीं किया और क़बाचा भी मारा गया, और मुल्तान और जो बाहरी भारत के क्षेत्र थे वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के अंदर आ गए.
अब दूसरी बंगाल मैं बड़ी दिक्कत हो गयी थी वहा के राज्यों ने भी आज़ादी घोसित कर दी थी, वहा के शासक सुल्तान घियासुद्दीन ने कह दिया हम आज़ाद है, लेकिन जैसे ही शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने सेना भेजी तोह सुल्तान घियासुद्दीन आत्मसमर्पण कर लिया, लेकिन तुरंत ही वापस विद्रोह कर दिया सुल्तान घियासुद्दीन ने और इस बार शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने अपनी पूरी सेना को बंगाल भेजा और घियासुद्दीन को हरा दिया, तोह बंगाल भी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के अंदर आ गया.
बंगाल का राजयपाल बनाया अपने सब से बड़े बड़े नासिर उद-दिन मोहम्मद को, लेकिन नासिर उद-दिन मोहम्मद की मौत हो जाती है १२२९ में, तोह बंगाल, बिहार यह सब शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को अकेले संभालना पड़ रहा था.
राजस्थान, बंगाल, बिहार और बाहरी भारत के राज्यों को शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने जीत लिया था और एक योग्य इस्लामिक शासन की स्थापना कर दी थी.
इक्ता प्रणाली इसकी शुरुआत शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने की थी, इक्ता मतलब भूमि मतलब ज़मीन, यह एक तहरा की कृषि प्रणाली थी, तोह यहाँ पर जो ज़मीने थी वह दी जाती थी सैनिको को, फिर नौकरो को, बड़े बड़े राजयपालो को.
दो तहरा के इक्ता होते थे, छोटे इक्ता और बड़े इक्ता, तोह जो बड़े इक्ता थे वह बड़े लोगो को दिए जाते थे और छोटे इक्ता जो छोटे पद पर थे इनको दिए जाते थे. इसी को इक्तादारी प्रणाली कहा जाता है, और दूसरी बात यहाँ पर मुफ्त मैं ज़मीने दी जाती थी.
अब शासन के सिलसिले को आगे भडाया शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रज़िया ने, जी हां रज़िया ने जो आगे जाके बनी रज़िया सुल्तान, क्योँकि शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के बेटे इतने कुशल नहीं थे की गद्दी को संभाल पाए इस लिए सुल्तान बनाया गया रज़िया को, इनके बारे मैं जानेगे आने वाले व्याख्यान मैं.
तोह दोस्तो यह थी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश जीवनी - Biography of Shams ud-din Iltutmish in Hindi
क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद दिल्ली सल्तनत को संभाला शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने और काफी अच्छा शासन किया १२१० लेकर १२३६ तक यह पूरा इनका शासन था.
दोस्तों इस जीवनी को अच्छे से समझने के लिए आप पहले क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की जीवनी पढ़े.
Who Was Shams ud-din Iltutmish
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश तीसरा शासक था गुलाम वंश का, लेकिन यह पहला ऐसा शासक था जिसने भारत मैं एक उचित इस्लामिक शासन की स्थापना की, क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के शासन मैं लाहौर को राजधानी बनाया गया था, लेकिन शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने इसमें परिवर्तन लाया और दिल्ली को राजधानी बना दी.Early Life of Shams ud-din Iltutmish
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश एक गुलाम था, और क्योँकि गुलाम होने की वजह से कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं है इसकी शुरूआती ज़िन्दगी के, कब पैदा हुआ, किसके यहाँ इसका जन्म हुआ इसके कोई दसातवेज़ नहीं है.लेकिन कहा जाता है की शम्सुद्दीन इल्तुतमिश बहुत ही सुन्दर व्यक्ति था दिखने मैं, काफी लम्बा-चौड़ा उसे बताया गया, और इसके मातापिता इसे इसकी इस खूबसूरती की वजह से काफी प्यार करते थे जिसकी वजह से शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के भाई बहन काफी जलते थे शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से.
और सिर्फ इसी वजह से शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को बेच दिया गया, सब से पहले इसको ख़रीदा था जमालुद्दीन ने, लेकिन इसके बाद जमालुद्दीन ने इसको क़ुत्ब अल-दिन ऐबक को बेच दिया.
यहाँ पर एक बात मैं आपको बताना चाहता हु क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद गद्दी का उत्तराधिकारी क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के बेटे आरामशाह को होना चाहिए था लेकिन गद्दी मिली क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के दामाद शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को.
दिल्ली के जो अधिकारी थे वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को सहयोग दे रहे थे, इन्होने ही शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को न्योता दिया था दिल्ली आ के यहाँ पर शासन करने का, यह बात आरामशाह को अच्छी नहीं लगी उसने विद्रोह किया और युद्ध किया शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से और युद्ध में जीत हुई शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की युद्ध मैं आरामशाह मारा गया.
Sultan
१२११ मैं शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का शासन शुरू हुआ, लेकिन शासन करना इतना आसान नहीं था शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को कांटो का ताज पहनाया गया था, शुरू मैं इसको बदायूं का राज्यपाल बनाया गया था लेकिन बाद में इसने दिल्ली के तरफ रुख कर लिया और वहा का शासक बन गया.दोस्तों क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की जीवनी के वक़्त मैंने आपके एक बात बतायी थी की क़ुत्ब अल-दिन ऐबक के लिए मोहम्मद घोरी का भरोसा जितना बेहद ज़रूरी था क्योँकि मोहम्मद घोरी की गद्दी के लिए ३ उत्तराधिकारी थे एक तोह खुद क़ुत्ब अल-दिन ऐबक, दूसरा एल्डोज और तीसरा क़बाचा, तोह जब चुनाव हुआ तोह क़ुत्ब अल-दिन ऐबक का हुआ तोह दूसरे चुप तोह बेठने वाले थे नहीं.
जैसे ही क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत हुई एल्डोज और क़बाचा यह खड़े हो गए भारत को जितने के लिए, तोह यहाँ पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के दो सब से बड़े दुश्मन थे एल्डोज और क़बाचा.
दूसरी और राजपूतो ने भी कह दिया था की हम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का शासन नहीं मानते, हम हमारा खुद का एक राज्य बनाएंगे, तोह राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र थे वहा पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश राज नहीं था.
देखिए क़ुत्ब अल-दिन ऐबक की मौत के बाद भारत के बहुत सारे राज्यों ने आज़ादी घोसित कर दी थी, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश सुल्तान बन गया था, जिस जिस राज्यों को शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से दिक्कत थी वहा पर सब से पहले इसने कूटनीति से समझाने की कोशिश की अगर नहीं समझे तोह उस राज्यों पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश आक्रमण कर देता था.
Challenges
सब से पहली और बड़ी चुनौती थी एल्डोज की, एल्डोज सब से प्रसिद्ध और खतरनाक दुश्मन था शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का, एल्डोज का कहना था का शम्सुद्दीन इल्तुतमिश मेरे अंदर रहेगा और भारत पर मेरा शासन होना चाहिए.एल्डोज को खवाराज़मियन साम्राज्य ने हरा दिया था, तोह एल्डोज ने अब अपना रुख कर लिया भारत की तरफ, पंजाब, दिल्ली पर अपना कब्जा जमाना चाहता था.
१२१५ मैं एल्डोज और शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का युद्ध हुआ, एल्डोज हार गया और मारा गया तोह एल्डोज का खतरा तोह टल गया, लेकिन अब राजपूत खड़े हो गए.
रणथम्बोर, जालोर, अजमेर, ग्वालियर यहाँ के राजाओ ने आज़ादी घोसित कर दी थी इन सब के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने और इन सभी राज्यों को भी अपने कब्ज़े मैं किया.
Genghis Khan Biggest Threat
लेकिन सब से बड़ा खतरा जो था शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को वह था मंगोल आक्रमण का, चेंगिज खान जी हां सब से बड़ा खतरा किसी भी शासक के लिए चेंगिज खान ही था.चेंगिज खान ने सब कुछ जीत लिया था भारत को छोर के, जलाल उद-दिन मंगबर्नी जो ख़्वारिज़्म साम्रज्य के आखरी शासक थे, चेंगिज खान ने जलाल उद-दिन मंगबर्नी से कहा की तुम हमारे साथ हमारे अंदर काम करो बातचीत से सब कुछ हल करते है.
जिस सन्देशवाहक को भेजा था चेंगिज खान ने अपना सन्देश देने के लिए उसका सीर काट दिया जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने और वापस चेंगिज खान को भेज दिया.
चेंगिज खान इससे काफी ग़ुस्सा हुआ और पूरे ख़्वारिज़्म साम्रज्य का सफाया कर दिया, बच्चे, बूढ़े, औरते सबको पकड़ पकड़ कर जान से मारा गया, लेकिन जलाल उद-दिन मंगबर्नी अपनी जान बचा कर वह से भागा और सिंधु नदी मैं कूद गया, अब सिंधु नदी के एक और भारत है, चेंगिज खान नदी के दूसरी और खड़ा था और उसे लगा की यह नदी पार ही नहीं कर पाएगा, लेकिन जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने नदी पार कर ली और भागते भागते भारत आया.
भारत आकर जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने शम्सुद्दीन इल्तुतमिश से यह मांग की के मुझे यहाँ रहने की जगह दो और हम दोनों मिलकर चेंगिज खान को हराएंगे.
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को पता था की हम चेंगिज खान के आगे टीक नहीं सकते इस लिए सीधा मना कर दिया जलाल उद-दिन मंगबर्नी को की हम आपको कोई पन्हा नहीं देंगे.
अब जलाल उद-दिन मंगबर्नी चला गया मुल्तान जहा पर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का दूसरा दुश्मन क़बाचा था, और इस वजह से क़बाचा के लिए दिक्कत खड़ी कर दी थी जलाल उद-दिन मंगबर्नी ने, और बाद मैं शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के साथ क़बाचा का युद्ध हुआ, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने हरा दिया और इसकी वजह से क़बाचा ने सिंधु नदी मैं कूद कर अपनी जान दे दी.
तोह दो चीज़े हुई दिल्ली बच गयी, मंगोल ने आक्रमण नहीं किया और क़बाचा भी मारा गया, और मुल्तान और जो बाहरी भारत के क्षेत्र थे वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के अंदर आ गए.
अब दूसरी बंगाल मैं बड़ी दिक्कत हो गयी थी वहा के राज्यों ने भी आज़ादी घोसित कर दी थी, वहा के शासक सुल्तान घियासुद्दीन ने कह दिया हम आज़ाद है, लेकिन जैसे ही शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने सेना भेजी तोह सुल्तान घियासुद्दीन आत्मसमर्पण कर लिया, लेकिन तुरंत ही वापस विद्रोह कर दिया सुल्तान घियासुद्दीन ने और इस बार शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने अपनी पूरी सेना को बंगाल भेजा और घियासुद्दीन को हरा दिया, तोह बंगाल भी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के अंदर आ गया.
बंगाल का राजयपाल बनाया अपने सब से बड़े बड़े नासिर उद-दिन मोहम्मद को, लेकिन नासिर उद-दिन मोहम्मद की मौत हो जाती है १२२९ में, तोह बंगाल, बिहार यह सब शम्सुद्दीन इल्तुतमिश को अकेले संभालना पड़ रहा था.
राजस्थान, बंगाल, बिहार और बाहरी भारत के राज्यों को शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने जीत लिया था और एक योग्य इस्लामिक शासन की स्थापना कर दी थी.
Death of Shams ud-din Iltutmish
१२३५ में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश बहुत बीमार पड़ गया था, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने २५ साल तक राज किया था और यह पूरा जो वक़्त था २५ सालो का यह इसने लड़ाई मैं ही बिताया था, तोह १२३५ में यह काफी बीमार पड़ गया और १२३६ में इसकी मृत्यु हो जाती है.Administration of Shams ud-din Iltutmish
प्रशासन की बात करे तोह बहुत सारी मस्जिदे बनवाई और क़ुतुब मीनार का जो निर्माण था वह पूरा करवाया, दिल्ली को काफी खूबसूरत बना दिया, और इसने अपनी खुद की मुद्रा की स्थापना कर दी थी जिसे कहा जाता था टंका और जीतल, टंका जो था वह चांदी था और जीतल जो था वह तांबा था और आज जो हमारे पास सिक्का है जीतल उसका आधार है.इक्ता प्रणाली इसकी शुरुआत शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने की थी, इक्ता मतलब भूमि मतलब ज़मीन, यह एक तहरा की कृषि प्रणाली थी, तोह यहाँ पर जो ज़मीने थी वह दी जाती थी सैनिको को, फिर नौकरो को, बड़े बड़े राजयपालो को.
दो तहरा के इक्ता होते थे, छोटे इक्ता और बड़े इक्ता, तोह जो बड़े इक्ता थे वह बड़े लोगो को दिए जाते थे और छोटे इक्ता जो छोटे पद पर थे इनको दिए जाते थे. इसी को इक्तादारी प्रणाली कहा जाता है, और दूसरी बात यहाँ पर मुफ्त मैं ज़मीने दी जाती थी.
अब शासन के सिलसिले को आगे भडाया शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रज़िया ने, जी हां रज़िया ने जो आगे जाके बनी रज़िया सुल्तान, क्योँकि शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के बेटे इतने कुशल नहीं थे की गद्दी को संभाल पाए इस लिए सुल्तान बनाया गया रज़िया को, इनके बारे मैं जानेगे आने वाले व्याख्यान मैं.
तोह दोस्तो यह थी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश जीवनी - Biography of Shams ud-din Iltutmish in Hindi
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