हेलो दोस्तों आज मैं आपके लिए एक और जीवनी लेकर आया हु एक और राजा की जिसका नाम है मोहम्मद घोरी तोह आज इनका जीवन देखेंगे, इससे पहले हम पढ़ चुके है महमूद ग़ज़नवी की जीवनी सब से पहला जो आक्रमण हुआ था वह मुहम्मद बिन कासिम ने किया था लेकिन उसके बाद महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर १७ बार आक्रमण किया था और इस वजह से जितने और इस्लामिक शासक थे उन्हें पता चल गया की भारत को हराया जा सकता है उन पर शासन किया जा सकता है. तोह आज देखंगे मोहम्मद घोरी जीवनी - Biography of Muhammad Ghori in Hindi.
दोस्तों यह जीवनी पढ़ने से पहले आप महमूद ग़ज़नवी की जीवनी ज़रूर पढ़े
महमूद ग़ज़नवी ने इस पूरे साम्रज्य पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था, इस ग़ज़नवी साम्राज्य को हटा दिया था घोरियों ने. तोह यहाँ पर Ghurid Empire था जो ८१९ से लेकर १२१५ तक रहा था.
तोह मोहम्मद घोरी सुल्तान था घुरिद साम्रज्य का पहले अफ़ग़ानिस्तान पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और इसके बाद यह भारत आ गया.
मोहम्मद घोरी ने अपनी गलतियोँ से बहुत कुछ सीखा था, इसी लिए इसका साम्रज्य दूर दूर तक फेल गया था अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, उत्तर भारत, पाकिस्तान, ताजीकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तोह यहाँ तक मोहम्मद घोरी की पोहच हो गयी थी.
गद्दी के लिए यहाँ बहुत लड़ाईया हुई थी , इनके चाचा ने भी आक्रमण किया गद्दी के लिए और भी जो कुछ लोग थे उन्होंने भी आक्रमण किया लेकिन दोनों भाइयो ने मिलकर सारे आक्रमण को तहस नेहस कर दिया.
मोहम्मद घोरी भारत पर आक्रमण रुपयों के लिए ही करना चाह रहा था लेकिन मोहम्मद घोरी एक समझदार शासक था उसको पता था की भारत पर सिर्फ आक्रमण नहीं करना बल्कि वह रह कर विस्तार करना चाहिए.
मध्य एशिया में काफी संघर्ष था और काफी राजनैतिक अस्थिरता थी और घुरिद साम्रज्य जो था वह कभी तुर्की से लड़ रहा है कभी ऑर्गन्स से लड़ रहा है, तोह दिक्कत यह थी की घुरिद साम्रज्य इन सब से लड़ रहा था, इसके वजह से इन्होने यह सोचा की अब हमे भारत जाना चाहिए और वहा पर अपना विस्तार चाहिए.
लेकिन मोहम्मद घोरी ने इस हार से सबक लिया, देखिए मोहम्मद घोरी कुशल कमांडर नहीं था महमूद ग़ज़नवी जैसा, मोहम्मद घोरी को हार का सामना करना पड़ता था लेकिन उचित रणनीति, दिमाग का इश्तेमाल और किन किन सैनिक को युद्ध के लिए लेकर जाना है इसका चुनाव यह बहुत अच्छे से करता था.
११८० में मोहम्मद घोरी ने पेशावर को जीत लिया और ११८१ में लाहौर को भी जीत लिया और ११८२ तक पूरा सिंध को इसने अपने कब्ज़े मैं ले लिया, उत्तर पश्चिम के जो क्षेत्र थे इसने अपने कब्ज़े मैं ले लिए.
११९० आते आते इसने सोच लिया की पूरे पंजाब पर हमे आक्रमण करना है और हुई पहली लड़ाई तराइन की ११९१ में.
तोह मोहम्मद घोरी ने खयबेरपास से आक्रमण किया, लेकिन अंत में जीत होती है पृथ्वीराज चौहान की क्योँकि बहुत ही बड़ी सेना थी इनकी और इनको हराना उस वक़्त वाक़ई मैं मुश्किल था.
लेकिन इस जीत के बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने बहुत बड़ी गलती कर दी थी इन्होने मोहम्मद घोरी को ज़िंदा छोर दिया था, और इसका खामयाज़ा पृथ्वीराज चौहान को आगे भुगतना पड़ेगा.
मोहम्मद घोरी ने उस युद्ध के बाद अपनी गलतियोँ पर गौर किया और रणनीति बनायी और पत्र लिखा पृथ्वीराज चौहान को की आत्मसमर्पण कर दो हम दुबारा आ रहे है.
पृथ्वीराज चौहान की सेना प्रशिक्षित थी और पहली तराइन के युद्ध में मोहम्मद घोरी ने सामने से आक्रमण किया था, लेकिन इस बार मोहम्मद घोरी ने कहा की हम चारो दिशाओ से आक्रमण करेंगे.
मोहम्मद घोरी ने अपनी सेना को ५ समूह मैं बाट दिया था, ४ विभाजन किये थे और ५ वे को सुरक्षित रक्खा था तोह इस तहरा से रणनीति बनायी गयी थी. और पृथ्वीराज चौहान की सेना सुबह से लेकर शाम तक लड़ती थी रात को नहीं लड़ती थी, इसी का फायदा उठाया मोहम्मद घोरी ने और हमला कर दिया रात को.
पृथ्वीराज चौहान को जैसे पता चला की आक्रमण हो चूका है, उन्होंने सेना को इकठ्ठा किया और कड़ी टक्कर दी मोहम्मद घोरी की सेना को, लेकिन मोहम्मद घोरी एक चाल चल गए, मोहम्मद घोरी ने अपनी सेना को आदेश दिया की पीछे हठ जाओ और यहाँ पर गलती कर दी पृथ्वीराज चौहान ने की जब मोहम्मद घोरी सेना पीछे हटने लगी तोह पृथ्वीराज चौहान को यह लगा की इनकी सेना भाग रही है, तोह जोश में आकर पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद घोरी की सेना का पीछा करने लगी.
और जो ५ वा समूह जो सुरक्षित रक्खा था मोहम्मद घोरी ने उसको आदेश दे दिया आक्रमण का, यह जो ५ व समूह था वह छिपा हुआ था और इसके बारे मैं पृथ्वीराज चौहान को कोई खबर नहीं थी तोह जैसे ही पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद घोरी की सेना के पीछे भागी ५ वे समूह ने आक्रमण कर दिया और इसके वजह से पृथ्वीराज चौहान को काफी नुक्सान उठाना पड़ा और दूसरा तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और मोहम्मद घोरी की जीत.
११९४ में फिर से मोहम्मद घोरी ने आक्रमण किया और कन्नौज के शासक राजा जयचंद को हरा दिया, और कन्नौज के जैसे ही जीता तोह यह बनारस तक चला गया, और यही से शुरू होती है दिल्ली सल्तनत जो के आनेवाले ६०० साल तक चलने वाली है.
मोहम्मद घोरी ने जब दूसरा तराइन का युद्ध जीता तोह ऐसा नहीं था की उसने सबको मरवाना शुरू कर दिया, उसका जो भी साम्रज्य उसने भारत मैं जो स्थापित किया था यह साम्रज्य इसने पृथ्वीराज चौहान के रिश्तेदारों को ही दिया.
मोहम्मद घोरी ने कह दिया की आप यहाँ के क्षेत्रों के देखिए आप हमारे अंदर काम करेंगे, क्योँकि हम यहाँ नहीं रह सकते, मोहम्मद घोरी महान सैनिक तोह नहीं था लेकिन उसके पास दिमाग बहुत था.
और भारत मैं मोहम्मद घोरी ने इस्लाम शासन की स्थापना को एक और कदम आगे बढाया, भारत को छोड़ते वक़्त इसने क़तुब उद दिन ऐबक को यही छोर दिया भारत में और अब क़तुब उद दिन ऐबक इस सिलसिले को आगे भड़ाने वाले थे.
मोहम्मद घोरी १२०६ में भारत से जब वह वापस अपने घर जा रहा था अपने काफिले के साथ और वह अपने वाहन मैं आराम कर रहा था वही पर उसको मार दिया गया, किसने मारा यह पता नहीं चला, लोगो को कहना है की पृथ्वीराज चौहान ने मार दिया क्योँकि दूसरा तराइन के युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान का क्या हुआ किसीको नहीं पता. मोहम्मद घोरी, पृथ्वीराज चौहान को ले गया था लोगो का कहना है की पृथ्वीराज चौहान वहा से भागने मैं कामयाब हो गया था लेकिन पुख्ता तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता.
तोह दोस्तों यह थी मोहम्मद घोरी जीवनी - Biography of Muhammad Ghori in Hindi. आशा करता हु आपको पसंद आयी होगी।
दोस्तों यह जीवनी पढ़ने से पहले आप महमूद ग़ज़नवी की जीवनी ज़रूर पढ़े
Ghurid Empire
यह है घुरिद साम्राज्य, इससे पहले हमने ग़ज़नवी साम्राज्य देखा था, Ghori को Ghor भी कहा जाता है और Ghor अफ़ग़ानिस्तान का एक क्षेत्र है और इस क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा ज़माने के लिए बहुत सारे शासक भिड़े हुए थे.महमूद ग़ज़नवी ने इस पूरे साम्रज्य पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था, इस ग़ज़नवी साम्राज्य को हटा दिया था घोरियों ने. तोह यहाँ पर Ghurid Empire था जो ८१९ से लेकर १२१५ तक रहा था.
Muhammad of Ghor
मोहम्मद घोरी के दो नाम थे Mu'izz ad-Din Muhammad Ghori और Shihab ad-Din यह दो नाम भी थे, और Ghor अफ़ग़ानिस्तान मैं एक जगह है इस लिए इससे Muhammad of Ghor कहा जाता है.तोह मोहम्मद घोरी सुल्तान था घुरिद साम्रज्य का पहले अफ़ग़ानिस्तान पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और इसके बाद यह भारत आ गया.
मोहम्मद घोरी ने अपनी गलतियोँ से बहुत कुछ सीखा था, इसी लिए इसका साम्रज्य दूर दूर तक फेल गया था अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, उत्तर भारत, पाकिस्तान, ताजीकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तोह यहाँ तक मोहम्मद घोरी की पोहच हो गयी थी.
Early Life of Muhammad Ghori
मोहम्मद घोरी का जन्म ११४९ घोर अफ़ग़ानिस्तान में हुआ था, इनके पिता का नाम था Baha al-Din Sam जोके एक स्थानीय शासक थे घोर क्षेत्र के, मोहम्मद घोरी का एक बड़ा भाई भी था जिसका नाम था Ghiyath al-Din Muhammad.गद्दी के लिए यहाँ बहुत लड़ाईया हुई थी , इनके चाचा ने भी आक्रमण किया गद्दी के लिए और भी जो कुछ लोग थे उन्होंने भी आक्रमण किया लेकिन दोनों भाइयो ने मिलकर सारे आक्रमण को तहस नेहस कर दिया.
Expansion
सब से पहले मोहम्मद घोरी ने अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र को अपने अंदर कर लिया, ग़ज़नवी साम्रज्य जहा जहा था वह से उसे उखाड़ कर फेक दिया, अब जैसा हर राजा को करना ज़रूरी होता है करना वही किया विस्तार किया और विस्तार करने के लिए यह भारत आया.मोहम्मद घोरी भारत पर आक्रमण रुपयों के लिए ही करना चाह रहा था लेकिन मोहम्मद घोरी एक समझदार शासक था उसको पता था की भारत पर सिर्फ आक्रमण नहीं करना बल्कि वह रह कर विस्तार करना चाहिए.
मध्य एशिया में काफी संघर्ष था और काफी राजनैतिक अस्थिरता थी और घुरिद साम्रज्य जो था वह कभी तुर्की से लड़ रहा है कभी ऑर्गन्स से लड़ रहा है, तोह दिक्कत यह थी की घुरिद साम्रज्य इन सब से लड़ रहा था, इसके वजह से इन्होने यह सोचा की अब हमे भारत जाना चाहिए और वहा पर अपना विस्तार चाहिए.
Invasion to India
खयबेरपास से मोहम्मद घोरी भारत आता है और सब से पहले उसने पंजाब के क्षेत्रों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया, ११७५ में मुल्तान पर आक्रमण किया था और मुल्तान को जीत लिया फिर ११७६ में कूच जो सिंध में आता है उसको जीत लिया और ११७८ में इसने गुजरात पर आक्रमण करने की कोशिश की लेकिन वहा के शासक चौलकया ने मोहम्मद घोरी को हरा दिया था.लेकिन मोहम्मद घोरी ने इस हार से सबक लिया, देखिए मोहम्मद घोरी कुशल कमांडर नहीं था महमूद ग़ज़नवी जैसा, मोहम्मद घोरी को हार का सामना करना पड़ता था लेकिन उचित रणनीति, दिमाग का इश्तेमाल और किन किन सैनिक को युद्ध के लिए लेकर जाना है इसका चुनाव यह बहुत अच्छे से करता था.
११८० में मोहम्मद घोरी ने पेशावर को जीत लिया और ११८१ में लाहौर को भी जीत लिया और ११८२ तक पूरा सिंध को इसने अपने कब्ज़े मैं ले लिया, उत्तर पश्चिम के जो क्षेत्र थे इसने अपने कब्ज़े मैं ले लिए.
११९० आते आते इसने सोच लिया की पूरे पंजाब पर हमे आक्रमण करना है और हुई पहली लड़ाई तराइन की ११९१ में.
First Battle of Tarain 1191
तोह मोहम्मद घोरी ने सोच लिया था की हमे यहाँ पर आक्रमण करना है, पहले इसने कोशिश की के कूटनीति से बातचीत से सब कुछ हल हो जाए लेकिन सामने थे पृथ्वीराज चौहान, आमेर के राजा इनसे जितना बहुत मुश्किल था क्योँकि इनकी सेना बहुत बड़ी थी.तोह मोहम्मद घोरी ने खयबेरपास से आक्रमण किया, लेकिन अंत में जीत होती है पृथ्वीराज चौहान की क्योँकि बहुत ही बड़ी सेना थी इनकी और इनको हराना उस वक़्त वाक़ई मैं मुश्किल था.
लेकिन इस जीत के बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने बहुत बड़ी गलती कर दी थी इन्होने मोहम्मद घोरी को ज़िंदा छोर दिया था, और इसका खामयाज़ा पृथ्वीराज चौहान को आगे भुगतना पड़ेगा.
मोहम्मद घोरी ने उस युद्ध के बाद अपनी गलतियोँ पर गौर किया और रणनीति बनायी और पत्र लिखा पृथ्वीराज चौहान को की आत्मसमर्पण कर दो हम दुबारा आ रहे है.
Second Battle of Tarain 1192
जैसे मैंने कहा की पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत बड़ी थी जिस में ३००० हाथी और ३००००० घुड़सवार सेना और फिर लाखो की पैदल सेना, दूसरी और मोहम्मद घोरी के पास भी एक लाख से ज़्यादा की सेना थी लेकिन राजपूतो के सामने बहुत मुश्किल था जितना.पृथ्वीराज चौहान की सेना प्रशिक्षित थी और पहली तराइन के युद्ध में मोहम्मद घोरी ने सामने से आक्रमण किया था, लेकिन इस बार मोहम्मद घोरी ने कहा की हम चारो दिशाओ से आक्रमण करेंगे.
मोहम्मद घोरी ने अपनी सेना को ५ समूह मैं बाट दिया था, ४ विभाजन किये थे और ५ वे को सुरक्षित रक्खा था तोह इस तहरा से रणनीति बनायी गयी थी. और पृथ्वीराज चौहान की सेना सुबह से लेकर शाम तक लड़ती थी रात को नहीं लड़ती थी, इसी का फायदा उठाया मोहम्मद घोरी ने और हमला कर दिया रात को.
पृथ्वीराज चौहान को जैसे पता चला की आक्रमण हो चूका है, उन्होंने सेना को इकठ्ठा किया और कड़ी टक्कर दी मोहम्मद घोरी की सेना को, लेकिन मोहम्मद घोरी एक चाल चल गए, मोहम्मद घोरी ने अपनी सेना को आदेश दिया की पीछे हठ जाओ और यहाँ पर गलती कर दी पृथ्वीराज चौहान ने की जब मोहम्मद घोरी सेना पीछे हटने लगी तोह पृथ्वीराज चौहान को यह लगा की इनकी सेना भाग रही है, तोह जोश में आकर पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद घोरी की सेना का पीछा करने लगी.
और जो ५ वा समूह जो सुरक्षित रक्खा था मोहम्मद घोरी ने उसको आदेश दे दिया आक्रमण का, यह जो ५ व समूह था वह छिपा हुआ था और इसके बारे मैं पृथ्वीराज चौहान को कोई खबर नहीं थी तोह जैसे ही पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद घोरी की सेना के पीछे भागी ५ वे समूह ने आक्रमण कर दिया और इसके वजह से पृथ्वीराज चौहान को काफी नुक्सान उठाना पड़ा और दूसरा तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और मोहम्मद घोरी की जीत.
११९४ में फिर से मोहम्मद घोरी ने आक्रमण किया और कन्नौज के शासक राजा जयचंद को हरा दिया, और कन्नौज के जैसे ही जीता तोह यह बनारस तक चला गया, और यही से शुरू होती है दिल्ली सल्तनत जो के आनेवाले ६०० साल तक चलने वाली है.
मोहम्मद घोरी ने जब दूसरा तराइन का युद्ध जीता तोह ऐसा नहीं था की उसने सबको मरवाना शुरू कर दिया, उसका जो भी साम्रज्य उसने भारत मैं जो स्थापित किया था यह साम्रज्य इसने पृथ्वीराज चौहान के रिश्तेदारों को ही दिया.
मोहम्मद घोरी ने कह दिया की आप यहाँ के क्षेत्रों के देखिए आप हमारे अंदर काम करेंगे, क्योँकि हम यहाँ नहीं रह सकते, मोहम्मद घोरी महान सैनिक तोह नहीं था लेकिन उसके पास दिमाग बहुत था.
और भारत मैं मोहम्मद घोरी ने इस्लाम शासन की स्थापना को एक और कदम आगे बढाया, भारत को छोड़ते वक़्त इसने क़तुब उद दिन ऐबक को यही छोर दिया भारत में और अब क़तुब उद दिन ऐबक इस सिलसिले को आगे भड़ाने वाले थे.
मोहम्मद घोरी १२०६ में भारत से जब वह वापस अपने घर जा रहा था अपने काफिले के साथ और वह अपने वाहन मैं आराम कर रहा था वही पर उसको मार दिया गया, किसने मारा यह पता नहीं चला, लोगो को कहना है की पृथ्वीराज चौहान ने मार दिया क्योँकि दूसरा तराइन के युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान का क्या हुआ किसीको नहीं पता. मोहम्मद घोरी, पृथ्वीराज चौहान को ले गया था लोगो का कहना है की पृथ्वीराज चौहान वहा से भागने मैं कामयाब हो गया था लेकिन पुख्ता तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता.
तोह दोस्तों यह थी मोहम्मद घोरी जीवनी - Biography of Muhammad Ghori in Hindi. आशा करता हु आपको पसंद आयी होगी।
0 टिप्पणियां